27 मार्च, 2018

तन्हाई






बचपन बीता खेल कूद में
कोई काम न धाम
फिर लगा किताबों का अम्बार
वह  समय भी कब बीता
नहीं रहा अब याद 
समय पंख लगा उड़ने लगा
ब्याह हुआ व्यस्तता बढ़ी  
पहले तो थी कुछ सीखने की ललक  
फिर एक व्यस्त दिनचर्या
सुबह से शाम तक जिन्दगी हुई एकरस
रात कब आती
मैं स्वप्नों में खो जाती
पर तब भी अपने लिए 
रहा अभाव समय का
यही आस रही 
वह समय कभी तो आएगा
जब अपने लिए भी समय होगा
खोजती रहती उन पलों को
जब मैं अकेली रह पाती
और होती मैं और  मेरी तन्हाई
पहले  मुझे चाह थी तन्हाई की
अब जब मैं हूँ एक कमरे में बंद
कुछ कर नहीं पाती
केवल सोचती रह जाती हूँ
ऐसी तन्हाई का क्या लाभ
जब उसका उपयोग न कर पाऊँ
जीवन भार सा लगता है
अब स्वप्न भी यदाकदा ही
याद रह पाते हैं
भूली भटकी यादों का जखीरा
रह गया है मेरे पास 
समय काटने को
तन्हाई की अब जरूरत नहीं
किसी को समय नहीं है
साथ बिताने को 
न ही आवश्यकता तन्हाई की
खुद के लिए कुछ करने को |

आशा

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