सुख दुःख आ गले मिले
बड़े प्रेम से आज 
पर दौनों में बहस छिड
गई 
है वर्चस्व किसका 
सुख ने तर्क रखा बड़ी
गंभीरता से 
यूं तो मैं कम समय
रुकता हूँ पर 
जब तक रुकता हूँ 
जीवन में रहता है
वर्चस्व बहार का
जीवन में रहता है
वर्चस्व बहार का
दुःख ने कुछ सोचा
फिर बोला 
अवधी  मेरी है अधिक 
 यदि मैं न रहता 
तुम्हारी ओर
तुम्हारी ओर
ध्यान किसी का न
जाता 
लोग कैसे जानते
तुमको 
मान लो मैं हूँ
तुम्हारा सहोदर 
मुझसे ही है पहचान
तुम्हारी 
पहले सुख सोच में पड़
गया 
फिर मान ली हार अपनी
है कटु सत्य यही कि
यदि दुःखों  के पहाड़ न टूटते 
 सुख का अनुभव कैसे होता
सुख  प्यार से गले
मिला दुःख से  
दोनों अपनी अपनी राह
चल दिए |
आशा 

 
 
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