होती यदि किताब
तुम्हारी
दिन रात हाथों में
रहती
एक एक शब्द से मन
मोहती
कभी बिछुड़ कर दूर न
जाती
कभी मन से कभी बेमन
से
तुम पढ़ते या खोल कर
बैठते
तुमसे किताब सुख नहीं छीनती
जब तुम किसी को देने
की सोचते
मैं पुस्तकों में
गुम हो जाती
केवल तुम्हारे हाथों
में ही सजती |
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