24 अप्रैल, 2018

होती यदि किताब


होती यदि किताब तुम्हारी
दिन रात हाथों में रहती
एक एक शब्द से मन मोहती
कभी बिछुड़ कर दूर न जाती
कभी मन से कभी बेमन से
तुम पढ़ते या खोल कर बैठते
 तुमसे किताब सुख नहीं छीनती
जब तुम किसी को देने की सोचते
मैं पुस्तकों में गुम हो जाती
केवल तुम्हारे हाथों में ही सजती |

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