14 मई, 2018

नज़रे इनायत




इक जरासी रात की 
 नज़रे इनायत क्या हुई 
,हम हम न रहे खुद को भूल गए 
वे भावनाओं में इस कदर खोए 

कि परिणाम भी न सोच पाए
नतीजा क्या होगा

 जानने की आवश्यकता न समझी
सुबह हुई व्यस्त कार्यक्रम रोज का

 कहीं ना छूट पाया
हम उस में इतने हुए व्यस्त
रात कहाँ गुजारी यह तक याद न रहा
कितने वादे किये उनसे

 पूरा करना भी भूले |
आशा




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Your reply here: