इक जरासी रात की
नज़रे इनायत क्या हुई
,हम हम न रहे खुद को भूल गए
वे भावनाओं में इस कदर खोए
कि परिणाम भी न सोच पाए
नतीजा क्या होगा
जानने की आवश्यकता न समझी
सुबह हुई व्यस्त कार्यक्रम रोज का
कहीं ना छूट पाया
हम उस में इतने हुए व्यस्त
रात कहाँ गुजारी यह तक याद न रहा
कितने वादे किये उनसे
पूरा करना भी भूले |
आशा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Your reply here: