26 जुलाई, 2018

भाग्य का खेल



थी खुशरंग 
रहा मेरा मन अनंग 
जाने थे कितने व्यवधान 
अनगिनत मेरे जीवन में !
हर कठिनाई का किया सामना 
भाग्य समझ कर अपना 
कभी भी मोर्चा न छोड़ा 
किसी भी उलझन से !
बहुतों को तो रहती थी जलन 
मेरी ही तकदीर से 
पर इस बार अचानक 
घिरी हुई हूँ भवसागर में 
नैया मेरी डोल रही है 
फँस कर रह गयी मँझधार में 
सारे यत्न हुए बेकार
मानसिक रूप से रही स्वस्थ 
पर शारीरिक कष्ट 
कर गए वार ! 


आशा सक्सेना  



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