02 अगस्त, 2018

सपनों का संसार अनूठा


थकी हारी रात को 
जब नयन बंद करती 
पड़ जाती निढाल शैया पर 
जब नींद का होता आगमन  
स्वप्न चले आते बेझिझक !
यूँ तो याद नहीं रहते 
पर यदि रह जाते भूले से 
मन को दुविधा से भर देते 
मन में बार बार आघात होता 
होता ऐसा क्यूँ ? 
जब स्वप्न रंगीन होता 
मन प्रसन्नता से भरता 
पर जब देखती 
किसी अपने को सपने में  
चौंक कर उठ बैठती !
सोचती कहीं कुछ बुरा होने को है 
ज़रूरी नहीं हर स्वप्न 
कोई सन्देश दे !
भोर की बेला में 
जो स्वप्न दिखाई देते 
अधिकतर सच ही होते 
जहाँ कभी गए ही नहीं 
स्वप्नों में वे ही दिखाई देते !
पर एक बात ज़रूर होती 
चाहे जहाँ भी घूमती 
प्रमुख पात्र मैं ही होती ! 
कुछ लोग दिन में 
जागती आँखों से भी स्वप्न देखते 
दिवा स्वप्न में ऐसे व्यस्त होते 
कल्पना में खो जाते 
खुद की सुध बुध खो बैठते ! 

आशा सक्सेना 






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