यूँ तो बरसों न मिले
अब मिले तो कहने को रहा
मुलाक़ात का समय कम रहा
यह कैसा ख्याल मन में आया
मुलाक़ात न हुई
जी का जंजाल हो गई
गले की फांसी हो गई
जी भर कर आनंद न लिया
ना अपनी जिन्दगी जी पाई
हर समय अहसास सालता रहा
क्या कमीं रह गई मेरे व्यवहार में
हजारों बार मन में झांका
पर कहीं कमीं नजर न आई
मैं कहाँ गलत थी पहले
अब कहाँ परिवर्तन आया
फिर क्यूँ मन में मलाल आया
ऐसा ख्याल मन से
न निकाल पाई |
आशा
आशा
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