06 अगस्त, 2018

मुलाकात




यूँ तो बरसों न मिले
अब मिले तो कहने को रहा
मुलाक़ात का समय कम रहा
यह कैसा ख्याल मन में आया
मुलाक़ात न हुई
 जी का जंजाल हो गई 
गले की फांसी हो गई
 जी भर कर आनंद न  लिया
ना अपनी  जिन्दगी जी पाई
हर समय अहसास सालता रहा
क्या कमीं रह गई मेरे व्यवहार में  
हजारों बार मन में झांका
पर कहीं कमीं नजर न आई
मैं कहाँ गलत थी पहले
अब कहाँ परिवर्तन आया 
फिर क्यूँ मन में मलाल आया
 ऐसा ख्याल मन से
न निकाल पाई |
आशा


आशा

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