अनगिनत जल कण उड़ते
बहते हुए झरने से
कोलाहल बेवजह होता
गिरते हुए निर्झर से
कुछ ऐसा ही हाल हुआ
प्रश्नों का अम्बार लगा
क्यूँ, क्या, किस लिए,
किसके लिए और
न जाने क्या क्या ?
क्या लाभ बेमतलब
प्रश्न करने का
जब सही उत्तर न मिले
उत्सुकता तो शांत न होगी
छोटी छोटी बातें
मन में घर कर जाएंगी
विकृत रूप में सामने आएंगी
सार कुछ न निकलेगा
ज्ञान पिपासा शांत न होगी
आँखों देखा सच
कानो सुनी झूट
बिना बात बातों को तूल देना
है कहाँ की सभ्यता
बात का बतंगड़ बनाना
शोभा नहीं देता
कुछ तो सबब हो
कारण जब स्पष्ट होगा
बातों में वजन होगा
ठोस सबूत होगा
व्यर्थ अनर्गल बातों से
कुछ लाभ नहीं होता
सबब बहस का
स्पष्ट होना चाहिए
व्यर्थ की बातों में
कुछ हासिल नहीं होता
बेवजह बहस का मुद्दा
अशांत मन करता
अकारण का कोलाहल
ध्वनि प्रदूषण ही बढ़ाता
बात बात में मन में
दरार आ जाती है
जो बढ़ती ही जाती है
प्रश्न वहीं रह जाते है
उत्तर नहीं मिल पाते
हम मुद्दे से भटक जाते हैं|
झूठे वादों पर टिक नहीं पाते
यह भी भूल जाते हैं कि
यहाँ आने का सबब क्या था
सब की नज़रों से गिर जाते हैं |
आशा
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