25 दिसंबर, 2018

सन्देश



तुम जाना उस देश
पहुंचाना उसका  सन्देश
वे तो भूल गए
ना ही   पत्र लिखा
 ना दिया कोई सन्देश
  पलक पावड़े बिछाए रही
विरहन मन को बहलाए रही
पर कब तक खुद को भुलावे में रखती
मन में खुद को तोल रही
क्या खता उसकी रही
जो बाँध न सकी उनको
अपने  प्रेमपाश  में
 कहाँ कमी रह गई उस बंधन में
मन में रहा बोझ
है यह कैसी विडंबना  
कोई नहीं समझ  पाया
शायद है यही नीयती का फैसला  
इससे कोई न बच पाया
यहीं सभी  झुक जाते हैं
समदर्शी  की सत्ता के आगे
अपने कर्मों का हिसाब
इसी लोक में हो जाता है
कहीं और नहीं जाना पड़ता |
 आशा

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