02 जनवरी, 2019

सद्भावना













–भावना  मन में हो  प्रवल
भाव भलाई के हों
 ना कि दुर्भावना के
समाज बना सामंजस्य
 बना कर चलने से 
साथ रहते समान विचारों वाले
मिलजुल कर  कार्य  करते
 एक विचारधारा वाले
कभी मत भिन्न होने लगते
  तब  मति भ्रष्ट हो जाती
बिना बात बहस छिड़ जाती
वहीं से चिंगारी उड़ती
दहकते अंगारों का रूप लेती
 सद्भावना में दरार पड़ जाती
लाभ अनेक आपसी तालमेल के
सुख शान्ति समृद्धि लाने के
जब नीव के पत्थर हिलने लगते  
बिघटनकारी सर उठाते
फटी हुई चादर नजर आते
जैसे ही सुलह सफाई होती
पैबंद चादर में लगे नजर आते
है सद्भावना अति आवश्यक
स्वस्थ समाज की नीव के लिए
होती प्रवल इमारत उसकी 
सब प्रेम से हिलमिल रहते 
सत्य तो यही है सद्भावना है 

 आवश्यक सौहाद्र के लिए 
आशा 



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