पलक तक न झपकीं
आँखों के आंसू सूखे
आँखों के आंसू सूखे
बेचैनी बढ़ती जाती थी
टी.वी से निगाह न हटती |
टी.वी से निगाह न हटती |
बंद द्वार दिल का
खुला जब धीरे से
खुला जब धीरे से
सूनी दूर सड़क पर
कोई नजर न आया |
कोई नजर न आया |
व्योम में आदित्य की
रश्मियाँ आई थीं
रश्मियाँ आई थीं
पर न जाने क्यूँ थी
ऊष्मा उनकी भी फीकी
ऊष्मा उनकी भी फीकी
बेचैनी गजब की छाई |
करार न था दिल को
करार न था दिल को
ज्यों ज्योँ समाचार आगे बढे
दिल दहलाने वाली ख़बरें
दिल दहलाने वाली ख़बरें
थमने
का नाम न लेतीं |
मां ने अपना बेटा खोया
उसकी गोद उजड़ गई
उसकी गोद उजड़ गई
बहन ने अपना भाई
अब राखी किसको बांधेगी|
अब राखी किसको बांधेगी|
पत्नि की मांग उजड़ गई
विरहन मन में कसक भरी |
विरहन मन में कसक भरी |
नन्हों की समझ सेथा बाहर
वहाँ क्या हुआ था
वहाँ क्या हुआ था
अपने पापा को याद करते
कहते वे कब आएँगे |
कहते वे कब आएँगे |
उनके दिल का सुकून भी
कहीं गुम हो गया था
उन लम्हों की याद में |
कहीं गुम हो गया था
उन लम्हों की याद में |
जब तिरंगे में लिपटी
वीर सपूत की अर्थी वहां आई
वीर सपूत की अर्थी वहां आई
उसकी शहादत रह गई
तस्वीर में सिमट कर|
तस्वीर में सिमट कर|
उन सभी के दिलों का करार
लौट नहीं पाया
लौट नहीं पाया
हर पल याद सताएगी
वीर की शहादत की |
व्यर्थ नहीं जाएगी
देश हित के लिए की गई
वीर की शहादत की |
व्यर्थ नहीं जाएगी
देश हित के लिए की गई
उन यादों की भरपाई
कभी न हो पाएगी |
कभी न हो पाएगी |
आशा
नमन वीर जवानों को 🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिखा आँखें नम हो गई
सादर
धन्यवाद अनीता जी |
हटाएंअत्यंत हृदयस्पर्शी ! बहुत ही मार्मिक ! सादर नमन शूर वीर सैनिकों को !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंसूचाना हेतु आभार सर |
सार्थक और सामयिक रचना
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार सर |
सुप्रभात |
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
हृदयस्पर्शी रचना...
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