यादों में बस गया है
वह दूर नहीं जाता
तन्हाइयों में आकर
मुझे रोज सताता
यादों से है उसका
इतना गहरा नाता
भूखे पेट रह कर भी
कोई शौक नया
वह नहीं पालता
जज्बातों से घिरा वह
है जिनसे उसका गहरा नाता
यही कमजोरी उसे
देती है मात सदा
ना तो जीने देती है
ना ही जुगाड़ कफन का होता
सब कुछ यादों में
सिमट कर रह जाता
एक विचार मन में आता
है क्या वह मेरे लिए
एक स्वप्न या कल्पना
है उसका अस्तित्व क्या ?
मेरे निजि जीवन में |
आशा
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (24-02-2019) को "समय-समय का फेर" (चर्चा अंक-3257) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (24-02-2019) को "समय-समय का फेर" (चर्चा अंक-3257) पर भी होगी।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर रचना ...आशा जी ,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद कामिनी जी |
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंक्या बात है ! हर रचना निखरती जा रही है ! बहुत सुन्दर !
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