बाल्यावस्था में प्यार का अर्थ
 नहीं जानते थे 
पर माँ का स्पर्श पहचानते थे 
वही उन्हें सुकून देता था
 दुनिया की सारी दौलत 
बाहों में समेत लेता था 
वय  बढ़ी मिले मित्र  बहुतेरे  
उनसे बढ़ा लगाव अधिक ही 
 अपने से प्रिय अधिक वे लगाने
लगे 
तब घर के लोगों से अधिक  
हुआ   व्यवहार उनसे |
 नव यौवन ने सारी सीमाएं तोड़ी
समान वय भी पीछे छूटी
जिन्दगी फिर किसी के
 प्यार में पागल हुई है|
पर वे  मित्र या बहन भाई नहीं
हैं
है अलग सा रिश्ता जिसे 
अभी तक परखा नहीं है|
फिर भी आकर्षण बहुत है 
 क्या है वह नहीं जानते ? 
 प्यार प्रेम में बदल गया कब
 नहीं पहचानते |
आनेवाले समय में  क्या होगा 
होगी प्रीत किससे 
बैसाखी से या बिस्तर से 
किसको पता |
आशा 

सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-02-2019) को "आईने तोड़ देने से शक्ले नही बदला करती" (चर्चा अंक-3258) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुप्रभात
हटाएंमेरी रचना की सूचना के लिए आभार सर |
वाह वाह ! बहुत प्यारी रचना ! हर अवस्था में प्यार का रंग अलग होता है !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद |
आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 27 फरवरी 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना है
जवाब देंहटाएंसादर
धन्यवाद अनीता जी |
हटाएंबचपन क्या प्यार अविस्मरणीय होता है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
iwillrocknow.com
टिप्पणी के लिए धन्यवाद नीतीश जी |
हटाएंहर उम्र के प्यार का रूप दिखती अति सुंदर रचना ,सादर नमन आप को
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