03 फ़रवरी, 2019

शाम कोई फिर सुहानी चाहिए






व्यस्तता इतनी कि
सर उठाने की फुरसत नहीं
पर कभी बेचैनी मन की
  रुक नहीं पाती
 वह  चाहती है
 शान्ति की तलाश
शाम की बेला में
 कहीं  विचरण करना
शाम कोई फिर सुहानी चाहिए
हरियाली मखमली बिछी हो
रंग बसंती दे दिखाई  दूर तक 
बयार वासंती चुहल करे फूलों से
 उसमें  बसे  फूलों की महक
पक्षियों की मधुर  चहचहाहट
और  हो  एहसास
 पुरसुकून जिन्दगी का
जागृत हो भावों का मेला
न हो तन्हाई का झमेला
चारों ओर हों खुशरंग चहरे
 कलम और कॉपी लिये
और हों लालायित
कुछ नया लिखने के लिये
शाम कुछ  ऐसी ही
 सुहानी  होना चाहिए
संध्या हो रूमानी सुहानी 
और  जीवंत मुखर
बस  है मन की आकांक्षा यही
शाम कोई ऐसी  ही होना चाहिए  |

आशा

4 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ! बड़ी रूमानी सी चाहत है ! ऐसी प्यारी सुहानी शाम मिल जाए तो क्यों न हों सपने साकार ! सुन्दर रचना !

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  2. चारों ओर हों खुशरंग चहरे
    कलम और कॉपी लिये
    और हों लालायित
    कुछ नया लिखने के लिये ...,
    बेहद खूबसूरत भाव लिए खूबसूरत वासन्ती रचना !

    जवाब देंहटाएं

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