होना न मगरूर
जब भी कोई बड़ी
उपलब्धि पाओ
हो एक आम आदमी
जमीन
से जुड़े हुए
यह न जाना भूल
यदि पंख फैलाए
उड़ने
के लिए
गिर जाओगे जमीन पर
चाटते रह जाओगे धूल
अपना अस्तित्व खो बैठोगे
दिल में चुभेंगे शूल
जो देंगे पीड़ा असीम
सह्न न कर पाओगे उसे
रोम रोम होगा दुखी
उस दर्द
को न सह पाओगे
एक गलत कदम
होता
कितना कष्टकर
न
जाना उधर भूल
अस्तित्व से सुलह न की यदि
टूट जाओगे बिखर कर
गरूर चूर चूर होगा
यदि सोच कर भ्रमित हुए
और हुए मगरूर |
सार्थक सन्देश देती सुन्दर प्रस्तुति ! बढ़िया !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए |
सुप्रभात
हटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार सर
सटीक रचना
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद ओंकार जी |