28 अप्रैल, 2019

हजारों यूँ ही मर जाते हैं



  रूप तुम्हारा महका महका
जिस्म बना संदल सा
क्या समा बंधता  है 
जब तुम गुजरती हो उधर  से |
हजारों यूँ ही मर जाते हैं
 तुम्हारे मुस्कुराने से
जब भी निगाहों के वार चलाती हो
 परदे की ओट से|
 देती हो जुम्बिश हलकी सी जब
 अपनी काकुल को
उसका कम्पन  और
 लव पर आती सहज  मुस्कान
  निगाहों के वार देने लगते 
सन्देश जो रहा अनकहा|
कहने की शक्ति मन में छिपे
 शब्दों की हुई खोखली
फिर भी हजारों  मर जाते हैं
 तुम्हारे मुस्कुराने से |
इन अदाओं पर
 लाख पहरा लगा हो 
कठिन परिक्षा से गुजर जाते हैं 
बहुत सरलता से |

आशा

11 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 30 अप्रैल 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (30-04-2019) को "छल-बल के हथियार" (चर्चा अंक-3321) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. आदरणीय आशा जी ये तो आपने एक दीवाने आशिक के मनाभावों को शब्द दे दिये जो किसी सुंदर प्रियतमा के प्रेम में आकंठडूबा है।मधुर रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।

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  4. धन्यवाद रेनु जी टिप्पणी के लिए |

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  5. वाह!!बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति!!

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  6. अत्यंत सुन्दर कविता! बहुत खूब !

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