कोई गड़बड़ हिसाब में नहो
ना किसी का लेना
नाही किसी को देना
हिसाब किताब बराबर रखना
मन को सुकून देता |
है यह मन्त्र सुख से जीने का
कोई दरवाजे पर आए और
अपना पैसा बापिस चाहे
शर्म से सर नत हो जाता |
जितनी बड़ी चादर हो
उतने ही पैर पसारे जाएं
यही सही तरीका
है जीने का |
उधारी सर पर यदि हो
नींद रातों की उड़ जाती
राह पर यदि सेठ का मकान हो
वह राह ही भुला दी जाती |
उधार में जीने वाले
ना तो खुद सोते हैं
ना चैन से रहने देते
परिवार के सदस्यों को |
आशा
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (10-05-2019) को "कुछ सीख लेना चाहिए" (चर्चा अंक-3331) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुप्रभात
हटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सर |
सही कहा दी आप ने
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद अनीता जी |
सौ टका खरी बात !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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