देते छाँव दोपहर में करते बचाव धूप से 
 धरा
से  हो कर  परावर्तित आदित्य की  किरणे 
मिल कर आतीं हरे भरे पत्तों से 
खिले फूल लाल लाल देख 
ज्यों ही गर्मीं बढ़ती जाती 
चिचिलाती धुप में नव पल्लव मखमली अहसास देते 
चमकते ऐसे जैसे हों  तेल में तरबतर  
फूलों से लदी डालियाँ  झूल कर अटखेलियाँ करतीं 
मंद मंद चलती पवन से 
वृक्ष की छाया में लिया है आश्रय बहुत से
जीवों ने 
एक पथिक क्या चाहे थोड़ी सी छाँव थकान दूर
करने के लिए 
वह आता सिमट जाता छाँव के  एक कौने में 
तभी  दो बच्चे आए
 लाए  डाल पर से छुपी तलवारें 
  कहा
आओ चलो शक्ति का प्रदर्शन करो 
पेड़ से तोडी गई कत्थई तलवारें चलने लगी पूरे  जोश  से 
दाव पर दाव लगाए सफल होने के लिए 
पर दोनो बराबरी पर रहे हार उन्हें स्वीकार
नहीं 
तभी फूलों की वर्षा हुई  वायु  के बढ़ते  बेग से 
बहुत हुई प्रसन्नता देख पुष्पों की वर्षा  
कहा यह है तुम्हारा पुरस्कार ईश्वर की और से
|
                                                आशा  

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 09.09.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3330 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
सुप्रभात
हटाएंसूचना हेतु आभार सर |
बहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसादर
धन्यवाद अनीता जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना आशा दी
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद अनुराधा जी |
बहुत सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए |
हटाएंवाह ! शब्द चित्र खींच दिया आपने ! बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद साधना |
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१३ मई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचनाकी सूचना के लिए आभार |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार अनीता जी |
आज मदर'स डे पर शुभ कामनाएं |