पीठ पर वार के लिए नहीं 
जो भी करता वार पीठ पर 
वह है दरिंदा इंसान नहीं |
प्यार है बहुत दूर उससे 
कभी उसे जान पाया नहीं
ममता क्या होती है ?
उसे खोज पाया नहीं  |
बचपन से ही परहेज रखा 
ये शब्द हैं निरर्थक जीवन में 
इनका कोई स्थान नहीं 
तभी कोई ऐसे भाव् मन में आते
नहीं 
 ऐसे शब्दों के जाल में उलझाते नहीं|
पर उसकी निगाहें 
 है खंजर की धार सी  पैनी 
तुरंत भांप लेती हैं 
क्या है मन में किसी के  |
मंशा पहचान लेती हैं 
पलटवार के लिए सदा रहती तत्पर 
उसके लिए नया नहीं है वार पर वार करना 
खंजर की पैनी धार है 
अपने को कैसे बचाना
 हमलावर कातिल से |
आशा
आशा

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (08-05-2019) को "मेधावी कितने विशिष्ट हैं" (चर्चा अंक-3329) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुप्रभात |सूचना हेतु आभार सर |
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन श्री परशुराम जयंती, अक्षय तृतीया, गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर, विश्व अस्थमा दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात सूचना हेतु आभार सर |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना ! क्या बात है !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद साधना |