04 जून, 2019

उजाला


चाँद की चांदनी
खिड़की से अन्दर झांकती
कण कण हो जाता जगमग
रौशन होता घर द्वार |
नन्हें दीप देते उसका साथ
पर सह न पाते वायु का वार
हार थक कर सो जाते
धीमाँ हो जाता उजाला |
पर चांदनी हार न मानती
दुगने बेग से फैल जाती
                                                चमकाती घर द्वार |
                                                                       आशा

7 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ! चाँँदनी सी ही शीतल ज्योतिर्मयी रचना ! बहुत सुन्दर !

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १० जून २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  3. सूचने हेतु आभार श्वेता जी |

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  4. धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

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  5. बहुत ही सुंदर रचना ,सादर नमस्कार

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