23 जून, 2019

दिल मेरा


  
दिल  तो है विशाल
बहुत कुछ समा सकता है इसमें
तुम पढ़ते पढ़ते थक जाओगे
मेरे भीतर मिलेगा तुम्हें
एक अखवार मोहब्बत का
जिसमें छपा होगा कोई पैगाम
जब भी उसे  पढ़ोगे
छलकेंगे नयन तुम्हारे
फिर भी उसे न खोज पाओगे
है वहां छिपी एक ऎसी पहेली
ना ही उसे समझ  पाओगे
ना ही हल कर पार्ओगे
मन है ही एक उलझनों का अखवार
जितना सोचोगे विचारोगे 
 उलझन के चक्र व्यूह में
  उलझते ही चले जाओगे |
आशा
  

12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (24-06-2019) को "-- कैसी प्रगति कैसा विकास" (चर्चा अंक- 3376) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 23/06/2019 की बुलेटिन, " अमर शहीद राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी जी की ११८ वीं जयंती - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. दिल की बातें दिल ही जाने।
    बहुत सुंदर कविता लिखी है आपने।

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  4. समझ न पाये पहेली तो विशाल हृदय की थाह कैसे मिले!

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  5. विशाल दिल की भूल भुलैया में खो जाने का खतरा भी तो है ! सुन्दर रचना !

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  6. धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

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