अधरों के बीच दबा सिगरेट
खूब धुएँ के छल्ले निकाले
पर कभी न सोचा कितना धुआँ
घुसेगा शरीर के रोम रोम में !
श्वास लेना भी दूभर होगा
खाने में भयानक कष्ट
मुँह न खुलता ! हुए बेआवाज़ !
जिसने जो उपाय बताये सब किये
पर सिगरेट न छोड़ पाए !
रोग बढ़ता गया तब आये
डॉक्टर की शरण में
उसने पहला प्रश्न यही पूछा
"क्या धूम्रपान किया निरंतर ?
यह तो कैंसर हो गया है
जो फ़ैल रहा है निरंतर
जीवन की अंतिम घड़ी तक
इससे छुटकारा न मिल पायेगा !"
बच्चों को बुलाया पास बैठाया
काग़ज़ कलम ले आये वे
ये रहा आख़िरी सन्देश
कोई भी शौक पालना पर
सिगरेट को हाथ न लगाना
यही है नसीहत मेरी
और कुछ विरासत में नहीं !
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (25-07-2019) को "उम्मीद मत करना" (चर्चा अंक- 3407) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सूचना हेतु आभार सर |
हटाएंसिगरेट ! जिसके एक तरफ आग, दूसरी तरफ अपनी जान का ही दुश्मन होता है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद गगन जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२९ जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सूचना हेतु आभार श्वेता जी |
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी |
हटाएंबहुत ही सुन्दर...
जवाब देंहटाएंसार्थक सृजन ! सुन्दर रचना !
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