शतरंज की बिसात पर
तरह तरह के मोहरे
अलग अलग रंग रूप
कोई राजा कोई बजीर
कोई पैदल चलते
चाल सब की होती भिन्न
जब राजा
चक्र व्यूह में फंसता
शह और मात का
सिलसिला चलता
दोनो प्रतिद्वंदी
बहुत सोच समझ कर
चलते अपने मोहरे
जब सभी चालें
व्यर्थ हो जातीं
और आगे की
राह ना सूझती
खिलाड़ी अपनी हार मान
नई बाजी फिर से
करते प्रारंभ
यह खेल बहुत
पेचीदा होता
शतरंज की बिसात पर
खेलना सरल नहीं होता
राज नीति के दावपेच
भी तो होते ऐसे
राजनीति के मंच पर
चलना सरल नहीं होता
राजनीति के मंच पर
चलना सरल नहीं होता
हर मोहरा अपना
महत्व जताता
सही समय पर
अपनी चाल चलता
चक्रव्यूह से उबरने में
कितने मोहरे पिटते
कोई नहीं जानता |
सही समय पर
अपनी चाल चलता
चक्रव्यूह से उबरने में
कितने मोहरे पिटते
कोई नहीं जानता |
आशा
शतरंज और राजनीति के चक्रव्यूह से बाहर निकलना आसान नहीं ! इससे दूरी बनाए रखने में ही भलाई है !
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