28 अगस्त, 2019

शब्दों का चोला





क्या सोच है मेरा ?
क्यों  स्वप्न बुन रहा हूँ
यह सब किसलिए है
किस के लिए सज रहा हूँ?
मुंह में शब्द सोए पड़े हैं
आँखें खुलना नहीं चाहतीं
फिर भी अपने उद्गारों को
स्पष्ट करना चाहता हूँ मैं
 जनता हूँ  जगहसाई को
पर मझे भय नहीं इसका
जो सच है वह नहीं बदल सकता
तभी अपनी भावनाओं को
शब्दों का चोला पहना रहा  हूँ मैं
मैं कहाँ तक सफल रहा हूँ
कैसे जान पाऊँ ?
फिर भी तुझे अपना बनाने की
कोशिश में लगा  हूँ मैं
जो भी इम्तहान देना पड़े दूंगा
बाक़ी भाग्य पर है निर्भर
 आशा लिए जिए जा रहा हूँ मैं |
आशा



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