किसने कहा तुमसे
कि दामन थाम लो मेरा
क्या है सम्बन्ध मेरा तुमसे
जग जाहिर किया जब से
नफरत सी हो गई है
नजरों के सामने से हटे जब से
तुम किसी काबिल नहीं हो
केवल हो दिखावे की मूरत
या हो एक छलावा
ऊपर कुछ और अन्दर कुछ
जग जाहिर हुई है
असलियत तुम्हारी जब से
नहीं है कोई उन्सियत तुमसे
तुम्हारा प्यार है एक दिखावा
परमात्मा दूर रखे तुमसे
जिल्लत सहन नहीं होती
कितनी बार कहूँ तुमसे |
आशा
आशा
बेमतलब के संबंधों से ऊब ही जाता है मन। शायद स्वार्थ हावी रहते हैं संबंधों पर।
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद पुरषोत्तम जी |
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 16 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार यशोदा जी |
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17.10.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3491 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति इस मंच की शोभा बढ़ाएगी ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
सुप्रभात
हटाएंआभार सूचना के लिए दिलबाग जी |
तौबा तौबा ! किस पर इतना गुस्सा आ रहा है ! अब तो खैर नहीं उसकी !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंVery good write-up. I certainly love this website. Thanks!
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