14 अक्टूबर, 2019

अभिमान

अभिमान कहो या गर्व
कुछ तो ऐसा है
कि तुम्हारा मुखमंडल
उन्नत हुआ है
हमें भी नाज है तुम पर
बड़े दिल से सम्मान किया है
याद रहे कभी इसे
घमंड में न बदल देना
नहीं तो सर शर्म से झुक जाएगा
कर्तव्य ही छुप जाएगा
केवल अधिकार की चाहत
कभी पूरी न हो पाएगी
अभिमान मिट्टी में मिल जाएगा
फिर लौट कर न आएगा |
आशा


6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 15 अक्टूबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (15-10-2019) को     "सूखे कलम-दवात"  (चर्चा अंक- 3489)   पर भी होगी। 
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात
    सूचना के लिए धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  4. अभिमान घमंड में न बदले, यही अच्छा है इंसान के लिए
    बहुत सही

    जवाब देंहटाएं
  5. सुन्दर विचार ! अभिमान और घमंड में फर्क समझाती सुन्दर रचना !

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: