तुम मौन हो
निगाहें झुकी हैं
थरथराते अधर
कुछ कहना चाहते हैं |
प्रयत्न इतना किस लिए
मैं गैर तो नहीं
सुख दुःख का साथी हूँ
हम सफर हूँ |
दो मीठे बोल यदि ना बोले
सीपी से सम्पुट ना खोले
तब तो ये अमूल्य पल
यूं ही बीत जाएंगे |
मैं समझ नहीं पाता
मौन की भाषा
कुछ सोच रहा हूँ
चूडियों की खनक सुन |
है शायद यह अंदाज
प्यार जताने का
फिर भी दुविधा में हूँ
है मौन का अर्थ क्या |
आशा
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (06-11-2019) को ""हुआ बेसुरा आज तराना" (चर्चा अंक- 3511) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार सर |
बहुत सुन्दर रचना ! मौन का अर्थ जो समझ ले समझो उसने दुनिया जीत ली !
जवाब देंहटाएंधन्यबाद साधना टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंअगर इस ब्लॉग की रचनाएं पसंद आती हैं तो मेरा ब्लॉग कीजिए |ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
११ नवंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,
सूचना हेतु आभार श्वेता जी |
हटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनुराधा जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सटीक एवं सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सृजन आशा दी ,सादर नमन
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