मैंने कभी सोचा नहीं
खुद के बारे में
समय ही नहीं मिला
सब का कार्य करने में |
जिन्दगी हुई बोझ अब तो
चन्द घड़ियाँ रही शेष
अकर्मण्य हुई अब तो
अब सोचना है व्यर्थ |
अब जीती हूँ
पुरानी यादे सहेजे
अभी भी खाली नहीं हूँ |
सोचकर देखा है बहुत
पर कोई फर्क नहीं पड़ता
किसी को जताने में
कि मेरा समय ही
मेरी उपलब्धि है |
आशा
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए ओंकार जी |
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 12 नवम्बर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंसूचना के लिए आभार यशोदा जी |
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-11-2019) को "आज नहाओ मित्र" (चर्चा अंक- 3517) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह! सटीक शीर्षक। सार्थक कार्यों के लिए लगाया गया समय ही हमारे जीवन की सच्ची उपलब्धि है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रकाश जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत बढिया प्रस्तुति, आशा दी।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद त्रिप्पनी के लिए ज्योति जी |
बढ़िया अभिव्यक्ति ! हताशा का स्वर प्रतिध्वनित हो रहा है जो नहीं होना चाहिए !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए साधना |
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