01 दिसंबर, 2019

फलसफा प्रजातंत्र का

बंद ठण्डे कमरों में बैठी सरकार
नीति निर्धारित करती 
पालनार्थ आदेश पारित करती 
पर अर्थ का अनर्थ ही होता 
मंहगाई सर चढ़ बोलती 
नीति जनता तक जब पहुँचती 
अधिभार लिए होती 
हर बार भाव बढ़ जाते 
या वस्तु अनुपलब्ध होती 
पर यह जद्दोजहद केवल 
आम आदमी तक ही सीमित होती 
नीति निर्धारकों को 
छू तक नहीं पाती 
धनी और धनी हो जाते 
निर्धन ठगे से रह जाते 
बीच वाले मज़े लेते ! 
न तो दुःख ही बाँटते 
न दर्द की दवा ही देते 
ये नीति नियम किसलिए और 
किसके लिए बनते हैं 
आज तक समझ न आया ! 
प्रजातंत्र का फलसफा 
कोई समझ न पाया ! 
शायद इसीलिये किसीने कहा 
पहले वाले दिन बहुत अच्छे थे 
वर्तमान मन को न भाया !
आशा

6 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. सुप्रभात
      धन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (25-11-2019) को "गठबंधन की राजनीति" (चर्चा अंक 3537) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं….
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव

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  3. सुप्रभात
    सूचना हेतु आभार यशोदा जी |

    जवाब देंहटाएं
  4. सुप्रभात
    मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सर |

    जवाब देंहटाएं
  5. बंद ठन्डे कमरों में जो नीति नियम बनाए जाते हैं वो नेताओं के शगल के लिए होते हैं ! जनता तक क्या और किस रूप में पहुँचता है इसकी ना तो उन्हें जानकारी होती है ना ही चिंता ! इसीलिये किसी नियम किसी क़ानून का कोई असर नहीं होता ! अच्छी कविता !

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