कभी अपने अन्दर झांका नहीं
चले दूसरों को नसीहत देने
उनको उनकी औकात दिखाने
यह है कैसी दोहरी मानसिकता तुम्हारी ?
पहले अपने अन्दर झांको
फिर दूसरों पर उंगली उठाओ
नहीं तो गलत मिसाल कायम होगी
तुमने अपने अन्दर क्या छिपाया
कोई जान न पायेगा
है बहुत सरल दूसरों पर उंगली दिखाना
यह भी तो जानो,ध्यान दो
है एक उंगली बाहर जब
बाक़ी तुम्हारीओर इंगित करती हैं
बंद मुट्ठी में अपना अंगूठा देखो
किधर? क्या दिखा रहा है ?
तुम्हारा सच दर्पण उगलेगा
तुम उससे मुंह मोड़ न पाओगे
वही तुम्हें असाली औकात दिखाएगा
जब भी तुम दर्पण में देखोगे
मेरी निगाहें तुम्हारा पीछा करेंगी
आवाज तुम्हारे कानों में गूंजेगी
उसे देख कर याद आएगा
मेरा कहा एक एक शब्द
मैंने तुम्हें कितना समझाया था
मैंने भी क्या कुछ नहीं कहा था तुमसे
पर तुमने कभी कुछ सोचा नहीं
अपनी जिद पर अड़े रहे सदा
जैसे मैंने कुछ कहा ही नहीं |
आशा
जैसे मैंने कुछ कहा ही नहीं |
आशा
नसीहतें भला किसे अच्छी लगती हैं आजकल ! सब ठोकर खाकर ही सीखना चाहते हैं तो यही सही ! कटु सत्य जतलाती सार्थक रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
३० दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
सूचना हेतु आभार स्वेता जी |
बहुत खूब सटीक .....
जवाब देंहटाएंवाह!!!
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंसुधा जी टिप्पणी के लिए धन्यवाद |