चाहे जितनी बाधाएं आए
सहज चलते जीवन की रवानी में
समय रुक न पाएगा
काल चक्र चलता जाएगा |
काल है एक बहती दरिया
गति दौनों की होती समान
पर काल की गति न होती स्थिर
वह जल सा बाधित नहीं किसी से |
समय ऊंची उड़ान भरता
पंख फैला कर पक्षी सा
किसी भी बाधा से न डरता
अम्बर में है एक छत्र राज उसका |
जितना भी उसे पकड़ना चाहे
मुठ्ठी में रेत सा फिसलता
जीवन दूर होता जाता
अकारण रूठ कर समय से |
समय के साथ यदि चलना चाहें
गत्यावरोधों का सामना करना होगा
यदि पार न कर पाए उन्हें
जीवन में विराम आ जाएगा |
आशा
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना चर्चा मंच पर की सूचना हेतु आभार |