भयंकर सर्दी का मौसम
चारो ओर बादल ही बादल
धुंद इतनी कि
हाथों को हाथ नहीं सूझते
जरा दूर खड़े
वाहन भी
दिखाई न दे पाते
यदि यही हाल रहा मौसम का
बड़े हादसे हो जाते
पूरे पेपर भरे हादसों से
मन में हलचल पैदा करते
नन्हें बच्चे बेहाल होते ठीठुरते
गर्म
कपड़े पहन कर
शाला को बेमन से जाते
यदि छुट्टी घोषित हो जाती
मन ही मन ख़ुशी मनाते
बड़ों का भी हाल बुरा है
कुहासे से बच पाने के लिए
किसी तरह गाड़ी से जाते
कहीं अगर अलाव दीखता
कुछ
समय ठहरने का
मन भी होता
पर घड़ी देख भूल कुहासा
वाहन
की गति बढ़ाते
समय की कीमत क्या होती है
मानो वही पहचानते
किसी को रोकाटोकी का
अवसर नहीं देना चाहते
यदि किसी ने कुछ बोला
कुहासे का वास्ता देते
और क्षमा मांग लेते |
आशा
आशा
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 14 जनवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंसूचना हेतु आभार यशोदा जी |
सच में यह कुहासा कईयों के लिए काल बन कर आता है ! समाचार पत्र प्रतिदिन कुहासे के कारण होने वाली दुर्घटनाओं की सूचना से भरे रहते हैं ! शीत का यह प्रकोप जितनी जल्दी समाप्त हो उतना ही अच्छा है ! सामयिक रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद साधना |
बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद सुजाता जी |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंसूचना के लिए आभार सर |
बहुत सटीक अभिव्यक्ति, आशा दी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ज्योती जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंवाह!!बहुत खूब!!आशा जी ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शुभा जी टिप्पणी के लिए |
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