हाथ में माचिस की तीली लिए
बच्चा खेल रहा आँगन में
अरे यह किसने दी है
इसके हाथ में |
इसके हाथ में |
आग लगा देती है
छोटी सी चिगारी
छोटी सी चिगारी
हाथ में माचिस की तीली हो
और यदि उसे जलाएं
छोटी सी लौ निकलती है उससे
कुछ क्षण भी नहीं लगते
सब ख़ाक होने में |
ऐसे ही मन की उथलपुथल
स्थिर नहीं रख पाती है
स्थिर नहीं रख पाती है
भावनाओं का उतार चढ़ाव
सर चढ़ कर बोलता है|
तभी भावनात्मक चिंगारी
आग
लगाती है
लोगों की भीड़ बदल जाती
भीड़ तंत्र में|
भीड़ तंत्र में|
जब जीवन में अलगाव की
अधिकता होती
है
सब कुछ जलकर
भस्म हो जाता है
भस्म हो जाता है
एक ही झटके में |
आशा
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (22-01-2020) को "देश मेरा जान मेरी" (चर्चा अंक - 3588) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुप्रभात मेरी रचना शामिल करने की सूचना हेतु आभार सर |
जवाब देंहटाएंसोलह आने सच बात.
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद नूपुरम जी |
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ! उत्तम सृजन !
जवाब देंहटाएं!
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२७ जनवरी २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सूचना हेतु आभार श्वेता जी |
हटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए |
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