पीड़ा तन की फिर भी
सहन की जा सकती है
चोट में दर्द से निजात पाना
कठिन
तो होता है पर असंभव नहीं |
मन में बिंधे शब्द बाण
करते गहरे घाव
जरा सी रगड़ से बनते नासूर
जब तब रिसाव उनसे होता
खून के आंसू नयनों से टपकते
इतना रुलाते हैं कि
नयनों में सुनामी आ जाती है
तट बंध टूट जाते हैं |
इतना दारुण कष्ट होता
सहनशक्ति जबाब दे जाती
सारी शिक्षा धरी रह जाती
स्त्री मन होता धरती सा
उसमें
है सहन शक्ति अपार
कहना बड़ा सरल है पर
जिस पर बीतती है वहीं
इसको अनुभव कर पाती है |
चोट कैसी भी हो
शारीरिक या मानसिक
दौनों में है अंतर बृहद
तन की चोट समय पा
ठीक तो हो जाती चाहे पूरी न हो
मन की चोट समय के साथ
और अधिक गहराती
कटु शब्द प्रहार करते इतने गहरे
कि घाव नासूर में बदल जाते
मन
को लगी चोट ठीक नहीं हो पाती
दिल की गहराई में पैंठ जाती
उत्तरोत्तर समय पा
अधिक ही उभर कर आती |
अधिक ही उभर कर आती |
आशा
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना ....... ,.8 जनवरी 2020 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद
सूचना हेतु आभार पम्मी जी |
जवाब देंहटाएंसत्य है ! तन के घाव भर जाते हैं लेकिन मन के घाव समय के साथ और गहरे होते जाते हैं ! इसीलिये कभी किसीका मन नहीं दुखाना चाहिए !
जवाब देंहटाएंसत्य वचन।बहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए सुजाता जी |
शुभप्रभात, चोट जैसी नकारात्मक विषय पर भी आपने विस्मयकारी रचना लिख डाली हैं । मेरी कामना है कि यह प्रस्फुटन बनी रहे और हमारी हिन्दी दिनानुदिन समृद्ध होती रहे। हलचल के मंच को नमन करते हुए आपका भी अभिनंदन करता हूँ ।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद पुरुषोत्तम जी |
अंतरमन में मर्म टटोलती सुन्दर अभिव्यक्ति आदरणीया दीदी जी
जवाब देंहटाएंसादर
वाह!!आशा जी ,बहुत खूब । सही है ,मन की चोट के घाव गहरे होते हैं ।
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