09 जनवरी, 2020

विकल्प


हूँ  गुनहगार
अवगुणों की खान
जितनी बार मन को टटोला
हर बार अपनी कमियों को देखा
अनदेखा न कर सकी
आत्म मंथन किया |
अवगुणों में  कोई  कमीं न आई  
सुधार की किरणे
 उन्हें छू तक न पाईं 
अब तो आशा छोड़ चुकी हूँ
झूटी दिलासा से क्या होगा |
जब बीमारी लाइलाज हो  
समूल नष्ट कर देना है बेहतर
 मैं अब जान गई हूँ  
अपने आप को पहचान गई हूँ |
चाहे जितने यत्न करू
 सभी  यूंही जाया हो जाते
लाइलाज व्यक्ति  को
 भाग्य भरोसे छोड़ा जाए
 या कोई इलाज किया जाए
उसे कोई फर्क नहीं पड़ता |
  वह यदि  भाग्यवादी हो जाए मुस्कुराए
 नकली मुखौटा चहरे पर लगाए
उसके मन में क्या उथलपुथल होती है
वही जान पाता है |
अपनी सोच के विकल्प को
सही ढंग से पहचान कर
वही खोज सकता है
सही दिशा दे सकता है
 कोई अन्य नहीं |
आशा

4 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (10-01-2019 ) को "विश्व हिन्दी दिवस की शुभकामनाएँ" (चर्चा अंक - 3576) पर भी होगी

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का

    महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    आप भी सादर आमंत्रित है 
    अनीता लागुरी"अनु"

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  2. इंसान आत्म चिंतन आत्म मंथन और आत्म निरीक्षण से ही स्वयं का परिष्कार कर सकता है ! कोई दूसरा इसमें थोड़ा बहुत सहायक हो सकता है लेकिन मुख्य कार्य तो उसे स्वयं ही करना होगा !

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात
    टिप्पणी के लिए धन्यवाद साधना |

    जवाब देंहटाएं

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