23 मार्च, 2020

स्वर्णकार




 
 वह है  पूरी तरह खरा सोना
कोई मिलावट नहीं उसमें
तभी तो गहने  गढना उससे
है कठिन बिना मिलावत के |
किसी सीमा तक मिलावट में
कोई हर्ज नहीं होता पर
अधिक मिलावट होने से
 चमक नहीं रहती  उसकी |
सारा सौन्दर्य कहीं खो जाता है
उसे दो चार बार पहनने से
पीतल सा दिखाई देता है
मन बहुत उदास हो जाता है |
  समाप्त हुई चाह अब तो नवीन फरमाइश की
नया जेवर तो बना नहीं सकते
पर पुराना गहना भी तुड़वा कर
 बरबाद करने का मन नहीं होता |
 जाने कितनी मिलावट स्वर्णकार करेगा
दो गुने पैसे चाहेगा अलग से
 सोच भी कुंद हो गया अब तो  
किसकी बात मानूं दिल की या दिमाग की
उलझन में फंसी हूँ  कैसे उभरूं  |
आशा

2 टिप्‍पणियां:

  1. दिमाग की मानिए ! आभूषणों का मोह त्यागिये ! मिलावट की मार से बचिए!

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  2. धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

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