जब भी कोरा कागज़ देखा
पत्र तुम्हें लिखना चाहा
लिखने के लिए स्याही न चुनी
लिखने के लिए स्याही न चुनी
आँसुओं में घुले काजल को चुना
जब वे भी जान न डाल पाये
मुझे पसंद नहीं आये
अजीब सा जुनून चढ़ा
अपने खून से पत्र लिखा
यह केवल पत्र नहीं मेरा दिल है
जब तक जवाब नहीं आयेगा
उसको चैन नहीं आयेगा
चाहे जितने भी व्यस्त रहो
कुछ तो समय निकाल लेना
उत्तर ज़रूर उसका देना
निराश मुझे नहीं करना
जितनी बार उसे पढूँगी
तुम्हें निकट महसूस करूँगी
फिर एक नये उत्साह से
और अधिक विश्वास से
तुम्हें कई पत्र लिखूँगी
जब भी उनको पढूँगी
मैं तुम में खोती जाऊँगी
आत्म विभोर हो जाऊँगी |
आशा
जब वे भी जान न डाल पाये
मुझे पसंद नहीं आये
अजीब सा जुनून चढ़ा
अपने खून से पत्र लिखा
यह केवल पत्र नहीं मेरा दिल है
जब तक जवाब नहीं आयेगा
उसको चैन नहीं आयेगा
चाहे जितने भी व्यस्त रहो
कुछ तो समय निकाल लेना
उत्तर ज़रूर उसका देना
निराश मुझे नहीं करना
जितनी बार उसे पढूँगी
तुम्हें निकट महसूस करूँगी
फिर एक नये उत्साह से
और अधिक विश्वास से
तुम्हें कई पत्र लिखूँगी
जब भी उनको पढूँगी
मैं तुम में खोती जाऊँगी
आशा
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (25-03-2020) को "नव संवत्सर-2077 की बधाई हो" (चर्चा अंक -3651) पर भी होगी।
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मित्रों!
आजकल ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सूचना हेतु आभार सर |
जवाब देंहटाएंनव सम्वतसर की हार्दिक शुभ कामनाएं सर |
जवाब देंहटाएं|
क्या बात है ! बड़ी रोमांटिक रचना लिख डाली ! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु आभार सहित धन्यवाद ओंकात जी |
हटाएंवाह!आशा जी ,बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंअति सुंदर ,सादर नमन
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