पलक पसारे बैठी है
वह तेरे इन्तजार में
हर आहट पर उसे लगता है
कोई और नहीं है तेरे सिवाय
हलकी सी दस्तक भी
दिल के
दरवाजे पर जब होती
वह बड़ी आशा
से देखती है
तू ही आया है
मन में विश्वास जगा है
चुना एक फूल गुलाब का
प्रेम के इजहार के लिए
काँटों से भय नहीं होता
स्वप्न में लाल गुलाब
देख
अजब सा सुरूर आया है
वादे वफ़ा का
नशा
इस हद तक चढ़ा
है कि
उसे पाने कि कोशिश
तमाम हुई है
चर्चे गली गली में सरेआम हो गए
पर उसे इससे कोई आपत्ती नहीं
मन को दिलासा देती है
तेरी महक से पहचान लेती है |
आशा
आशा
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (04-03-2020) को "रंगारंग होली उत्सव 2020" (चर्चा अंक-3630) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए आभार सर |
सूचना हेतु आभार यशोदा जी |
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट - कविता २
सुन्दर रचना ! उत्तम अभिव्यक्ति !
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