आज मातृ दिवस को भेट है यह रचना -
मां की ममता पिता का प्यार
शब्दों में बयान नहीं हो सकता
यह तो वही जानते है जिन्हें
यह नसीब नहीं होता |
हैं बहुत हतभागी वे जो
द्वार तक तो पहुंचे भी
पर रहे दूर दौनों से
कभी दुलाराए नहीं गए |
अनुशासन का भय ऐसा रहा
यस मम्मा या नो पापा के सिवाय
कोई भी संवाद न हुआ
वे भूले दौनों का प्रेम भाव |
घर सराय में कैसे बदला याद नहीं
कौन कब आता है ?कब जाता है?
क्या खाता है? क्या पीता है ?
इससे किसी को मतलब नहीं |
इससे तो पहले अच्छे थे
छोटे से घर में रहते थे
सब प्रेम के बंधन से बंधे थे
बिना कहे ही मां जान जाती थी
हम क्या चाहते थे ?
अब आधुनिकता की भेट चढ़ा जीवन
बदले प्रगाढ़ सम्बन्ध सतही में
भेट चढ़े आधुनिकता की जंग में |
भेट चढ़े आधुनिकता की जंग में |
आशा
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (04 मई 2020) को 'ममता की मूरत माता' (चर्चा अंक-3698) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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रवीन्द्र सिंह यादव
मातृ दिवस पर सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंयथार्थपरक रचना ! बढ़िया है !
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