बिना किसलय हुई वीरान बगिया
माली की देखरेख के बिना
माली उलझा अपने आप में
बिना सही संसाधनों के |
एक समय ऐसा था
जब गुलशन परिसर में घुसते ही
सुगंध आने लगती थी
पूरी बगिया महक उठती थी
रंग बिरंगे खिलते पुष्पों से |
अब पर्यावरण
प्रदूषण से
पुष्पों की खेती हुई प्रभावित
हरी डालियाँ सूख रहीं
कच्ची कलियाँ खिल न सकीं |
यही हाल यदि रहा
बिना
गुल होगा गुलशन बंजर
ना ही सुनाई देगा भ्रमरों का गुंजन
ना ही उड़ेगी रंगबिरंगी तितलियाँ पुष्पों पर |
बच्चों का तितली पकड़ना
उनके पीछे दौड़ लगाना
बहुत आकर्षित करता है संध्या को
गुलजार गुलशन में घूमना |
वह है एक मुरझाया किसलय
वीरान बाग में बिना देखरेख के
या कोई माला के पुष्प सी
जिसे फैका गया उतार कर |
किसलय तभी शोभा देता है
जब तक टहनी पर लगा हो
या गुलदस्ते में सजा हो
अब क्या जरूरत उसकी |
आशा
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 11 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार यशोदा जी |
हटाएंसारगर्भित रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अखिलेश जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत सुन्दर सृजन ! बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंधन्यवाद शास्त्री जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंशब्द -सृजन२१ के लिए मेरी रचना किसलय के चुनाव के लिए आभार अनीता जी |
बहुत सुंदर और सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया।
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