दूर तक रेत ही रेत
उस पर पद चिन्ह तुम्हारे
अनुकरण करना क्यूँ हुआ प्रिय मुझे ?
कारण नहीं जानना चाहोगे|
मैंने तुम्हें अपना गुरू
दिल से
माना है
तुम्हारा हर कदम जहाँ पड़ता है
उसे अपना देवालय जाना है|
एक उमंग से
बड़ी ललक से भर
तुम्हारा अनुसरण किया है
क्यूँ कि तुम हो मेरे लिए आदर्श |
अनुकरण तुम्हारा
मेरा जीवन सवार देता है
मेरा जीवन सवार देता है
आत्म संतुष्टि प्रदान करता है
सही हो यदि पथ प्रदर्शक
पैर डगमगाते नहीं हैं |
पैर डगमगाते नहीं हैं |
यथा संभव सफल कार्य
पर प्रोत्साहित करते हैं
आगे बढ़ने के लिए मार्ग दर्शन देते
है यह बड़ी सौगात मेरे लिए |
आशा
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार सर |
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत भावपूर्ण कोमल सी रचना ! अति सुन्दर !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएंसही हो यदि पथ प्रदर्शक
जवाब देंहटाएंपैर डगमगाते नहीं हैं |
सार्थक रचना। 👌👌👌