कहाँ गाऊँ क्या गुनगुनाऊँ
किस लय
को चुनू
किस स्वर को अजमाऊँ
पसोपेश
में हूँ आज
किसे अपना गुरू बनाऊँ
सब सहज ही कह देते हैं
आवाज तुम्हारी है मधुर
पर यह सच
नहीं है
मेरा मन रखने को
मुझे प्रोत्साहित करने को
झूटी तसल्ली देते है
अक्सर कहते है
तुम्हारी अभिव्यक्ति में है दम
पर यह भी मेरा मन
बहलाने को कहा जाता है
यह भी सच नहीं है
मैं यह भी जानती हूँ
समय कैसे कटे
हरबार सोचती हूँ
नई
नई योजनाएं
बनाती हूँ पर हर जगह
असफल रहती हूँ
अब तो सोच का
दायरा भी हुआ सीमित
मैं बहुत उलझन में हूँ
क्या नया करू ?
कोई तो मार्ग होगा
मन बहलाने का अभी
किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंची हूँ
कोई मार्ग मुझे बतलाओ
मुझे राह सुझाव
मैं क्या करू?
ASHA
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 18 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसूचना के लिए धन्यवाद सर |
हटाएंस्वयं से वार्ता करती सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर टिप्पणी के लिए |
हटाएंबेहतरीन सृजन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुजाता जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंआपको पहली बार देखा है अपने ब्लॉग पर |बहुत प्रसन्नता हुई |
इसी प्रकार ब्लॉग पर आते रहिये |टिप्पणी के लिए धन्यवाद सर |
टिप्पणी हेतु धन्यवाद साधना |
जवाब देंहटाएंAmazing Article I Really Like This Thanks For Sharing Sandeep Maheshwari Quotation in Hindi
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