बातों बातों में खींच रही
ले जा रही है बारम्बार मुझे
उस वृक्ष के नीचे जहां
हो रही फूलों की वर्षा
पेड़ की टहनियों से
कोमल पन्खुड़ियों की छुअन
मुझे है प्रिय बहुत
बचपन की याद आज
बरबस आ रही है मुझे
जब छोटे थे दरवाजे पर
जा कर फूल इकठ्ठे करते थे
माँ की वर्जना पर
बहुत बेमन से उनको
बाहर फेंक देते थे
घर को साफ रखने की
हिदायत ही काफी थी
निगाहों का डर ही था पर्याप्त
दोबारा कहना नहीं पड़ता था
हुआ है बहुत बदलाव
आज के बच्चे कुछ
सुनना ही नहीं चाहते
करते हैं मनमानी
ले जा रही है बारम्बार मुझे
उस वृक्ष के नीचे जहां
हो रही फूलों की वर्षा
पेड़ की टहनियों से
कोमल पन्खुड़ियों की छुअन
मुझे है प्रिय बहुत
बचपन की याद आज
बरबस आ रही है मुझे
जब छोटे थे दरवाजे पर
जा कर फूल इकठ्ठे करते थे
माँ की वर्जना पर
बहुत बेमन से उनको
बाहर फेंक देते थे
घर को साफ रखने की
हिदायत ही काफी थी
निगाहों का डर ही था पर्याप्त
दोबारा कहना नहीं पड़ता था
हुआ है बहुत बदलाव
आज के बच्चे कुछ
सुनना ही नहीं चाहते
करते हैं मनमानी
दिनभर व्यस्त रहते है
मोबाइल व् कम्प्युटर में
बाहर की कोई वस्तु
उन्हें आकृष्ट नहीं करती
हो रहे हैं दूर बहुत
प्रकृति से |
आशा
सही कहा
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद |ओंकार जी
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 17 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार सर |
हटाएंउपयोगी रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए |
हटाएंसच है ! बच्चों की दुनिया टी वी, लैप टॉप, मोबाइल और डिजिटल वर्ल्ड तक सीमित रह गयी है ! न वे प्रकृति के निकट हैं न पुस्तकों के ! न ज्ञान में वृद्धि हो रही है न स्वास्थ्य में ! चिंताजनक स्थिति है !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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