21 मई, 2020

नटखट मनमोहन



पीताम्बर  धारण किया है
 काली कमली ओढी 
मोर मुकुट शीश पर सजा है
हुए है तैयार वन को जाने को
धेनुओं को चराने को
हाथों में  बाँसुरी लिए हैं
संग लिए है ग्याल बालों को
दिन कब बीत जाता है
 वहां ज्ञात नहीं होता
सूर्यास्त होते ही
शाम की दस्तक होती है
 ध्यान आता है कान्हां को
 घर  को करना है  प्रस्थान  
पर माखन चोरी  तो रह गई
नींद कैसे आएगी उसके बिना
खैर कुछ देर और सही
यशोदा माँ की डांट सह्लेंगे
 वे एक घर के  सामने रुके 
जल्दी से खिड़की खोल
कूद गए भोजन कक्ष में
देखी दही की हांडी
खुद को रोक नहीं पाया
कुछ खाया कुछ फैलाया
 कुछ  मित्रों को खिलाया
फिर दौड़ लगा दी घर को
बेचारी गोपी  दौड़ी पीछे
पर हाथ न आ पाए
जब की शिकायत यशोदा माँ से
झूठा उसे ही ठहरा  दिया
साफ निकले बच  के
ऐसे हैं मन मोहन छलिया
कोई नहीं जान पाया 
क्या मन  में रहता उनके |
आशा




8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 21 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. धन्यवाद सुधा जी टिप्पणी के लिए |

    जवाब देंहटाएं
  3. नटखट कान्हा की लीलाएं ! इनका कोई अंत नहीं ! जितनी कष्टप्रद दिखती हैं उतना ही मन को लुभाती भी हैं ! सुन्दर शब्द चित्र !

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: