रात भर करवटें बदलीं
तुम्हारे इंतज़ार में
मगर तुम न आए
क्यूँ झूटे वादे किये उससे ?
क्यूँ यूँ ही बहकाया उसे |
तुमने यह तक न सोचा
कि क्या गुजरेगी उस पर
वह तो दिन रात परेशान हाल रहती
खोई रहती तुम्हारी यादों में |
इंतज़ार और कितना कराओगे उसे
उसकी जगह यदि तुम होते
क्या हाल होता तुम्हारा
यह भी सोच कर देखना |
जब दफ्तर से आने में देर हो जाती थी तुम्हें
वह एकटक द्वार पर निगाहें
टिकाए रहती थी
किसी काम में भी मन न लगता था
अधिक देर होने पर शिकायतों का
अम्बार लगा देती थी |
तुम भी क्षमा याचना करते नहीं थकते थे
अब बात तो दूर हुई
एक दूसरे को देख ना भी नहीं चाहते
अब इतना बदलाव किस लिए ?
कोई कारण तो रहा होगा |
जब तक आपस में बातचीत न करोगे
कोई मसला हल न होगा
किसी को तो पहल करनी होगी
मसला हल कैसे होगा |
आशा
आशा
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा मंगलवार (02-06-2020) को
"हमारे देश में मजदूर की, किस्मत हुई खोटी" (चर्चा अंक-3720) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।
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"मीना भारद्वाज"
सुप्रभात
हटाएंसूचना हेतु आभार मीना जी |
बहुत सुन्दर और सन्देशप्रद रचना।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के इए आभार सहित धन्यवाद सर |
बहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुधा जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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