22 जून, 2020

आशियाना






आशियाना

की थी कल्पना 
 एक छोटे से आशियाने की 
हुई  साकार 
 पर पापड़ बहुत  बेलने पड़े
आखिर सफलता मिल ही गई 
उस की खोज में
 जितना सुकून मिला वहां आकर
 शब्द कम पड़ जाते हैं
 उसकी प्रशस्ति में
सोचा न था
 कभी वह अपना होगा
अपने ऊपर भी
 खुद की छत होगी
सुख शान्ति और प्रगति होगी
कल्पना थी एक छोटे से घर  की
घिरा  हुआ चारो ओर 
 हरियाली से फूलों भरी क्यारियों से 
 हों सारे क्रिया कलाप वहीं
 सुबह से शाम तक
दोपहर में  चारपाई पर 
बैठ बुनाई करू
सारे सपने साकार  करूँ 
 जब गृहप्रवेश किया
पाकर आशीष प्रभू का
 शीश नवाया पूरी शिद्दत से |
आशा

4 टिप्‍पणियां:

  1. क्या बात है ! प्रार्थना फलीभूत हुई स्वप्न साकार हुआ ! बहुत बहुत बधाई हृदय से ! आपका आशियाना बेहद सुन्दर !

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