जब काली घटाएं छाईं आसमान में
बादल गरजे बिजली कड़की
बारिश की बूंदों ने की अमृत की वर्षा
बदले मौसम में धरा ने ली अंगड़ाई |
चहु ओर छाई हरियाली खेतों में
हुआ मन विभोर इस अनुपम छटा को देख
इसी मनोरम दृश्य को देख
आत्मसात करने की इच्छा हुई बलवती |
गर्म मौसम की तल्खी हुई कम
ठण्डी बयार बह चली जिस ओर
नन्हीं नन्हीं बूंदों ने किया सराबोर
घर आँगन खेतों को हो कर विभोर |
तरसी निगाहें इसे आत्मसात करने को
प्रकृति की अनमोल छवि मन में उतारने को
मनोभाव मन में दबा न सकी
कागज़ पर कलम भी खूब चली |
आशा
चौमासे के आगाज का सुन्दर गीत।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शास्त्री जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंआभार सहित धन्यवाद कुलदीप जी सूचना के लिए |
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत सुन्दर चली कलम ! मौसम भी सुहाना हुआ और मन भी प्रफुल्लित हुआ !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए|
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जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति।
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