11 जून, 2020

स्वतंत्रता


हुई स्वतंत्र अब  आत्मा
जन्म मरण से हुई  मुक्त
अब बंधक नहीं शरीर की
असीम  प्रसन्नता हुई आज  |
वह बंधन नहीं चाहती
उन्मुक्त विचरण  की है चाह
स्वतंत्र रहना चाहती है
किसी तरह की रोक टोक
ना आई उसे रास  |
जब भी जन्म लिया धरती पर
खुद को पाया ऐसी कैद में
ना ही  खुल कर हंसी कभी
ना हुआ कभी  खुशी का एहसास उसे |
भवसागर में ऐसी उलझी
सुख दुःख के चक्कर में
जिन्दगी जीना भूली
म्रत्यु का बंधन रहा सदा |
अब तोड़ आई है सब बंधन
स्वतंत्र जीवन जीने के लिए
 किसी बंधन का दंश
अब नहीं सालता उसे  |
यूं ही नहीं लिए फिरती थी
इस  पञ्च तत्व  का बोझा उठाए
था कर्ज पिछले  जन्म का
जिसे चुकाना था उसे  |
अब कोई अहसान नहीं है किसी का  
नहीं है कोई बोझ दिल पर
निश्चिन्त हो कर रह सकती है
स्वतंत्र विचरण कर सकती है |
है  स्वतंत्र किसी बंधन में बंधी नहीं है
भव सागर के चक्र से दूर 
पर फिर भी अकेली नहीं है
 ईश्वर  है  उसके   साथ |
आशा |




11 टिप्‍पणियां:

  1. अरे वाह ! आध्यात्मिकता का रंग लिए बहुत ही सुन्दर सार्थक रचना ! बहुत खूब !

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  2. उन्मुक्त विचरण की है चाह
    सुन्दर रचना

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 15 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. सूचना हेतु आभार यशोदा जी |

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