हुई स्वतंत्र अब आत्मा
जन्म मरण से हुई मुक्त
अब बंधक नहीं शरीर की
असीम
प्रसन्नता हुई आज |
वह बंधन नहीं चाहती
उन्मुक्त विचरण की है चाह
स्वतंत्र रहना चाहती है
किसी तरह की रोक टोक
ना आई उसे रास |
जब भी जन्म लिया धरती पर
खुद को पाया ऐसी कैद में
ना ही
खुल कर हंसी कभी
ना हुआ कभी खुशी का एहसास उसे |
भवसागर में ऐसी उलझी
सुख दुःख के चक्कर में
जिन्दगी जीना भूली
म्रत्यु का बंधन रहा सदा |
अब तोड़ आई है सब बंधन
स्वतंत्र जीवन जीने के लिए
किसी बंधन का दंश
अब नहीं सालता उसे |
यूं ही नहीं लिए फिरती थी
इस
पञ्च तत्व का बोझा उठाए
था कर्ज पिछले जन्म का
जिसे चुकाना था उसे |
अब कोई अहसान नहीं है किसी का
नहीं है कोई बोझ दिल पर
निश्चिन्त हो कर रह सकती है
स्वतंत्र विचरण कर सकती है |
है
स्वतंत्र किसी बंधन में बंधी नहीं है
भव सागर के चक्र से दूर
पर फिर भी अकेली नहीं है
ईश्वर
है उसके साथ |
आशा |
अरे वाह ! आध्यात्मिकता का रंग लिए बहुत ही सुन्दर सार्थक रचना ! बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद साधना |
हटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनुराधा जी टिप्पणी के लिए |
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सूचना हेतु आभार मीना जी |
जवाब देंहटाएंउन्मुक्त विचरण की है चाह
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
धन्यवाद सर टिप्पणी के लिए |
हटाएंजय हो आपकी।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर टिप्पणी के लिए |
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 15 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार यशोदा जी |
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