12 जून, 2020

रणभेरी


                  बीते कल की बात है
कुछ लोग एकत्र हुए
 उस  खेल परिसर में
पहले बातें सामान्य रहीं 
 फिर तंज कसे गए  
एक दूसरे पर आक्षेप लगाए  
वार पर पलटवार होने लगे
 लोगों में टूटा संयम का बाँध
  भांजी लाठियाँ लांघी सारी सीमाएं
ना बड़ों का सम्मान रहा 
 ना  छोटों की फिक्र किसी को
ताल ठोक रणभेरी बजा
 किया युद्ध का एलान
  परिसर परिवर्तित हुआ  रणक्षेत्र में
पहले पत्थरबाजी आगजनी
 फिर  हाथापाई आपस में
देशी कट्टों से भी
 कोई परहेज नहीं  
खून खराबा तोड़ फोड़ से
 हुए जब त्रस्त कुरूक्षेत्र में 
 मारपीट हुई सामान्य सी बात
जब सारी  सीमा पार हो गई  
कुछ लोग मध्यस्तता करने पहुंचे
जब बीच बचाव से काम न चला
 अश्रु गेस के गोले दागे
 भीड़ तंत्र ने सर उठाया
बल प्रयोग अंतिम स्रोत बना
 उसे नियंत्रित करने का 
शान्ति तो स्थापित हुई
 पर बहुत समय के बाद
किसी ने न सोचा
 नुक्सान हुआ  किस का  
हाथ  कुछ आया नहीं
 ना ही कोई लाभ हुआ
 बरबादी का आलम पसरा
जाने कितनों की जान गई
जान माल की हुई तवाही
रण से हुई   क्षति भारी |
आशा





9 टिप्‍पणियां:

  1. यही होता है ! जब जूनून सवार होता है तो भले बुरे का ज्ञान समाप्त हो जाता है ! और हर तरफ तबाही का मंज़र पसर जाता है ! सुन्दर सटीक चित्रण !

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(१४- 0६-२०२०) को शब्द-सृजन- २५ 'रण ' (चर्चा अंक-३७३२) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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    उत्तर
    1. सुप्रभात
      सूचना के लिए आभार सहित धन्यवाद अनीता जी |

      हटाएं


  3. रण में कौशल दिखाने की मनोवृत्ति आत्मकेन्द्रित विचार का विस्तार है।

    विचारणीय अभिव्यक्ति।

    सादर नमन।

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