बीते कल की बात है
कुछ लोग एकत्र हुए
उस खेल परिसर में
पहले बातें सामान्य
रहीं
फिर तंज कसे गए
एक दूसरे पर आक्षेप
लगाए
वार पर पलटवार होने
लगे
लोगों में टूटा
संयम का बाँध
भांजी
लाठियाँ लांघी सारी सीमाएं
ना बड़ों का सम्मान रहा
ना
छोटों की फिक्र किसी को
ताल ठोक रणभेरी बजा
किया युद्ध का एलान
परिसर परिवर्तित हुआ रणक्षेत्र में
पहले पत्थरबाजी
आगजनी
फिर हाथापाई आपस में
देशी कट्टों से भी
कोई परहेज नहीं
खून खराबा तोड़ फोड़ से
हुए जब त्रस्त कुरूक्षेत्र में
मारपीट हुई सामान्य सी बात
जब सारी सीमा पार हो गई
कुछ लोग मध्यस्तता
करने पहुंचे
जब बीच बचाव से काम
न चला
अश्रु गेस के गोले दागे
भीड़ तंत्र ने सर
उठाया
बल प्रयोग अंतिम
स्रोत बना
उसे नियंत्रित करने का
शान्ति तो स्थापित
हुई
पर बहुत समय के बाद
किसी ने न सोचा
नुक्सान
हुआ किस का
हाथ कुछ आया नहीं
ना ही कोई लाभ हुआ
बरबादी का आलम पसरा
जाने कितनों की
जान गई
जान माल की हुई
तवाही
रण से हुई क्षति भारी |
आशा
बहुत सुन्दर और सार्थक।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए सर |
हटाएंयही होता है ! जब जूनून सवार होता है तो भले बुरे का ज्ञान समाप्त हो जाता है ! और हर तरफ तबाही का मंज़र पसर जाता है ! सुन्दर सटीक चित्रण !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद ओंकार जी |
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(१४- 0६-२०२०) को शब्द-सृजन- २५ 'रण ' (चर्चा अंक-३७३२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
सुप्रभात
हटाएंसूचना के लिए आभार सहित धन्यवाद अनीता जी |
रण में कौशल दिखाने की मनोवृत्ति आत्मकेन्द्रित विचार का विस्तार है।
विचारणीय अभिव्यक्ति।
सादर नमन।