सुबह काम शाम काम
ज़रा भी नहीं आराम
अब होने
लगी है थकान
जर्जर हुआ शरीर |
पीछे छूटे खट्टे
मीठे
अनुभवों के निशान
मस्तिष्क की स्लेट पर
पुरानी यादों के रूप
में |
समय लौट नहीं पाया
बहुत साथ दिया उसने
पहले भी साथ निभाया
अब भी निभाता है |
वक्त कब पीछे छूटा याद नहीं रहा
जब तक ताकत थी शरीर
में
बढ़ती उम्र के तकाजे
से
कब तक बचे रहेंगे |
है यही सत्य जीवन का
कैसे भूल गए
एक दिन ऐसा भी होगा
पलग पर पड़े रहेंगे |
बीते कल की बातें
तस्वीरों की तरह
एक के बाद एक
आँखों के केनवास पर से गुजरेंगी |
यादें ताजी हो
जाएंगी
बापिस बचपन में जाने
का
खेल खेलने का मन
होगा
पर केवल कल्पना में|
पर केवल कल्पना में|
आशा
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद ओंकार जी |
हटाएंबृद्धावस्था का सही चित्रण।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद टिप्पणी के लिए |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार यशोदा जी |
कल्पना के संसार से सुन्दर और कोई संसार नहीं ! जहाँ जी चाहे विचरण करा देता है ! जिससे जी चाहे उससे मिलवा देता है ! फुर्सत हो, मन प्रसन्न हो और कल्पना की पतंग आसमान में ऊँचाई पर उड़ रही हो और क्या चाहिए ! सुन्दर सृजन !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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